फासले ही फासले हैं हमसफ़र कोई नही
🌷🌷 गज़ल 🌹🌹
फासले ही फासले हैं हम सफ़र कोई नहीं।
मंजि़ले ही मंजि़लें हैं रह गुजर कोई नहीं।
राह पर निकला था लेकर आंख में मंज़िल का ख़्वाब।
सब रास्तों पर चल रहे थे राहबर कोई नहीं।
सिर्फ मंज़िल पर नजर हो हौसला भरपूर हो।
हिम्मत ए बंदा जहां में दरबदर कोई नहीं ।।
शहर में मज़दूर ने सबके बनाए घर "सगी़र"।
जिसने सबको आशियां दी उसका घर कोई नहीं।
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डॉक्टर सगीर अहमद सिद्दीकी खैरा बाजार बहराइच
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Arshi khan
03-Sep-2021 11:48 AM
Suprrr👌👌
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Niraj Pandey
03-Sep-2021 10:32 AM
वाह लाजवाब👌
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Miss Lipsa
02-Sep-2021 09:09 PM
Wow sir
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